सूर्य मँदिर मडखेरा

सूर्य मँदिर मडखेरा  -       

बहुत दिनों से मडखेरा के सूर्य मँदिर जाने की इच्छा थी इस रविवार वह इच्छा पूरी हुई , वैसे तो सूर्य मँदिरों निर्माण गुप्त काल से ही शुरू हो गया था और गुप्तवँशीय कुमार गुप्त ( 414 – 450  ) द्वारा निर्मित मँँदसौर के सूर्य मँदिर में इसकी झलक देखने को मिलती है | गुप्तकाल की समाप्ति के बाद एक लँबे अँतराल में प्रतिहार काल (821 -1000 में सूर्य मँदिरों निर्माण हुआ जो की मध्यकालीन वास्तुकला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं और मडखेरा निर्मित सूर्य मँदिर भी उनमें से एक है !


कैसे पहुँचें -

                                  मडखेरा मध्य प्रदेश के टीकमगढ जिले में स्थित है। टीकमगढ-ओरछा रोड पर टीकमगढ से ठीक 11 किमी पहले बावरी तिगैला से शिवराजपुर गाँव के लिए दाएँ मुडें जो कि मुख्य सङक से 4.5 किमी अँदर है ! शिवराजपुर पहुँचने पर बाएँ मुडे और 2.5 किमी चलने पर हम पहुँच जाते हैं मडखैरा ! स्थानीय इलाके में इसे खैरा मडखैरा के नाम से भी जानते हैं जिसका अर्थ होता है मँदिरों क गाँव । गाँव में सूर्य मँदिर के अलावा एक और माँ विन्ध्यवासिनी मँदिर भी है अगर आप आए हैं तो वह भी देख सकते हैं ।


            निकटतम रैलवे स्टेशनों में ललितपुर व​ झाँसी हैं बाकी अब टीकमगढ भी रैल नेटवर्क से कनेक्ट हो गया है । निकटतम हवाईअड्डा ग्वालियर और भोपाल हैं। टीकमगढ मध्य प्रदेश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हालांकि, मध्य प्रदेश में कोई राज्य परिवहन नहीं है, इसलिए सभी बस सेवाएं निजी बस सँचालकों  द्वारा संचालित की जाती हैं, इसलिए यात्रा का समय अधिक है।

मड की वास्तुकला -

                 पूर्व की और मुख किए यह मँदिर एक विशाल चबूतरे पर निर्मित है मँदिर मुख्य प्रष्ठ दो खँभों पर टिका हुआ है और मँदिर में एक गर्भ ग्रह , अँतराला एक मुख मँडप शामिल है मँदिर पँचरथ शैली में निर्मित है तथा इसका शिखर जमीन से नौं मँजिल उपर है

  
                                   मँदिर दो भागों में विभाजित है, निचले भाग में चार आले हैं दो सामनें और दो दोनों साइड दोनों साइड वाले आले अभी खाली हैं लेकिन इतिहासकार आर डी वनर्जी के अनुसार कभी इनमें नटराज की वेशकीमती मूर्तियाँ हुआ करती थी जो अब गायब हैं सामने के आलों में ब्रह्मा विष्नु की मूर्तियाँ विराजमान हैं

ऊपरी भाग में सिँह मुख के अन्दर एक चेहरे की पहचान हुई है जो कि एक पानी घडा और एक अखरमाला लिए हुए है इतिहासकार आर डी बनर्जी ने उसे शिव की मान्यता दी है , जबकि इतिहासकार कृष्ण देव ने इसकी सुर्य से तुलना की है

मुख्य मूर्ती -

मँदिर के अन्दर की मुख्य मूर्ती में सात घोड़ों द्वारा तैयार रथ में खड़े सूर्य की आक्रती विधमान है | अरुण को रथ चलाते दिखाया गया है तथा दँड और पिंगल सूर्य के दोनो तरफ़ खडे हैं । सूर्य के दोनों तरफ दो पक्षी दर्शाए ग​ए हैं । सूर्य को धनुश पर प्रत्यँचा चढाते हुए देखा जा सकता है ।




                              गाँवों के स्थानीय नागरिकों बुजुर्गों से बातचीत करने पर मँदिर के बारे में अनेक दिलचस्प किस्से आपको सुनने को मिल जाएँगे लेकिन उनका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण मिलने से में इस लेख में उनको शामिल कर सका शासन द्वारा मँदिर के रखरखाव की कोई उचित व्यवस्था देखने को नहीँ मिलती है और यदी ऐसा ही रहा तो शायद भविष्य में हम अपनी इस ऐतिहासिक विरासत को खो देंगे

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